शक्तिपीठ हिंगलाज

पाकिस्तान में स्थित कई प्राचीन हिंदू मंदिरों में से सबसे ज़्यादा महत्व जिन मंदिरों का माना जाता है उन्हीं में से एक है हिंगलाज माता का मंदिर. ये वही स्थान है जहाँ भारत का विभाजन होने के बाद पहली बार कोई आधिकारिक प्रतिनिधिमंडल गया है.  इस अस्सी सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल की अगुवाई की पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने और इस यात्रा को सफल बनाने में एहम भूमिका निभाई पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ ने.

हिंगलाज के इस मंदिर तक पहुँचना आसान नहीं है. मंदिर कराची से 250 किलोमीटर उत्तर पश्चिम में बलूचिस्तान प्रांत में स्थित है.  हिंदू और मुसलमान दोनों ही इस मंदिर को बहुत मानते हैं.  पाकिस्तान स्थित हिंगलाज सेवा मंडली हर साल लोगों को मंदिर तक लाने के लिए यात्रा आयोजित करती है. हिंगलाज सेवा मंडली की ओर से यात्रा के प्रमुख आयोजक वेरसीमल के देवानी कहते हैं कि मुसलमानों के बीच ये स्थान “बीबी नानी” या सिर्फ़ “नानी” के नाम से जाना जाता है.

शक्तिपीठ:
हिंगलाज हिंदुओं के बावन शक्तिपीठों में से एक है. मंदिर काफ़ी दुर्गम स्थान पर स्थित है पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव की पत्नि सती के पिता दक्ष ने जब शिवजी की आलोचना की तो सती सहन नहीं कर सकीं और उन्होंने आत्मदाह कर लिया.  माता सती के शरीर के 52 टुकड़े गिरे जिसमें से सिर गिरा हिंगलाज में. हिंगोल यानी सिंदूर, उसी से नाम पड़ा हिंगलाज.  हिंगलाज सेवा मंडली के वेरसीमल के देवानी ने बीबीसी को बताया कि चूंकि माता सती का सिर हिंगलाज में गिरा था इसीलिए हिंगलाज के मंदिर का महत्व बहुत अधिक है.

कनफ़ड़ योगी:
इस पुरातन स्थान को फिर से खोजने का श्रेय जाता है कनफ़ड़ योगियों को.  जिस हिंगलाज मंदिर में आज भी जाना मुश्किल है वहीं कई सौ साल पहले कान में कुंडल पहनने वाले ये योगी जाया करते थे.  इस कठिन यात्रा के दौरान कई योगियों की मौत हो जाती थी जिनका पता तक किसी को नहीं चल पाता था.  कहा जाता है कि इन्हीं कनफ़ड़ योगियों के भक्ति के तरीके और इस्लामी मान्यताओं के मिलने से सूफ़ी परंपरा शुरू हुई. सिंधी साहित्य का इतिहास लिखने वाले प्रोफ़ेसर एल एच अजवाणी कहते हैं, “ईरान से आ रहे इस्लाम और भारत से भक्ति-वेदांत के संगम से पैदा हुई सूफ़ी परंपरा जो सिंधी साहित्य का एक अहम हिस्सा है.”

कुछ धार्मिक जानकारों का मानना है कि रामायण में बताया गया है कि भगवान श्रीराम हिंगलाज के मंदिर में गए थे.

मान्यता है कि उनके अलावा गुरु गोरखनाथ, गुरु नानक देव और कई सूफ़ी संत भी इस मंदिर में पूजा अर्चना कर चुके हैं.

हिंगलाज का नाम मेरे लिए इतिहास, साहित्य और आस्था की आवाज़ थी मगर जब मैं हिंगलाज की यात्रा पर निकली तो यह क्षेत्र मेरे लिए प्रकृति और भूगोल की पुकार बन गया.  कराची से वंदर, ओथल और अगोर तक की दो सौ पैंतालीस किलोमीटर की लंबी यात्रा के दौरान जंगल भी बदलते मंजरों की तरह मेरे साथ-साथ चल रहा था.  हिंगलाज के पहाड़ी सिलसिले तक पहुँचते-पहुँचते हमने प्रकृति के चार विशालकाय दृश्यों को एक जगह होते देखा. यहाँ जंगल, पहाड़, नदी और समुद्र साथ-साथ मौजूद हैं. प्रकृति के इतने रंग कहीं और कम ही देखने को मिलते हैं.

हिंगलाज मुसलमानों के लिए ‘नानी पीर’ का आस्ताना और हिंदुओं के लिए हिंगलाज देवी का स्थान है.

लसबेला के हिंदुओं की सभा के लीला राम बताते हैं कि हिंदू गंगाजल में स्नान करें या मद्रास के मंदिरों में जाप करें, वह अयोध्या जाएँ या उत्तरी भारत के मंदिरों में जाकर पूजा-आर्चना करें, अगर उन्होंने हिंगलाज की यात्रा नहीं की तो उनकी हर यात्रा अधूरी है.

हिंगलाज में हर साल मार्च में हजारों हिंदू आते हैं और तीन दिनों तक जाप करते हैं. इन स्थानों के दर्शन करने वाली महिलाएँ हाजियानी कहलाती हैं और इनको हर उस स्थान पर सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है जहाँ हिंदू धर्मावलंबी मौजूद हैं.  हिंगलाज में एक बड़े प्रवेश द्वार से गुज़र कर दाख़िल हुआ जाता है. यहाँ ऊपर बाईं ओर पक्के मुसाफ़िरख़ाने बने हुए हैं. दाईं ओर दो कमरों की अतिथिशाला है. आगे पुख़्ता छतों और पक्के फ़र्श का विश्रामालय दिखाई देता है.  मगर आपके ख़याल में यहाँ की आबादी कितनी होगी? अगर आप को आश्चर्य न हो तो यहाँ की कुल संख्या सैकड़े के आंकड़े से ज़्यादा नहीं है.

निवासी:

दस दिन पहले यहाँ केवल कफमन और जानू रहा करते थे. लच्छन दास और जान मोहम्मद अंसारी लेग़ारी को लसबेला की हिंदूसभा दो-दो हज़ार रुपए प्रति माह देती है. लच्छन का संबंध थरपारकर से है जबकि जानू हिंगलाज से आधे घंटे पैदल के फ़ासले पर हिंगोल नदी के किनारे की एक बस्ती में रहता है.

कमू अभी दस रोज़ पहले ही इस स्थान का निवासी बना है. कमू सिंध के शहर उमरकोट का रहने वाला है. इसके माँ-बाप बचपन में ही गुज़र गए थे. भाई ने किसी बात पर पिटाई कर दी तो वह घर छोड़ कर कराची में एक हिंदू सेठ के यहाँ नौकरी करने लगा. यहाँ पर इसकी उम्र बीस वर्ष हो गई.  दस रोज़ पहले उसने सेठ से पैसे मांगे तो उसे सिर्फ पंद्रह रुपए मिले और उसने कराची से हिंगलाज तक तीन सौ मील का सफ़र पैदल चलते और अनेक लोगों से लिफ्ट लेकर तय किया. कमू ने कहा कि मेरी ज़िंदगी सफल हो गई है.  “मैं बहुत शांति से हूँ, मैं माता के चरणों में आ गया हूँ. अब मैं अपना जीवन यहीं बिताउंगा.”  हिंदूसभा ने यात्रियों के खाने के लिए जो दान यहाँ रख छोड़ा है इसमें से लच्छन, जानू और कमू भी अपना पेट भरते हैं.

काली माँ
कहा जाता है कि हिंगलाज माता के मंदिर में गुरु नानक और शाह अब्दुल बिठाई हाज़िरी दे चुके हैं.  लच्छन दास का कहना है कि हिंगलाज माता ने यहाँ पर गुरू नानक और शाह लतीफ का दिया दूध पिया था.  कमू से हमारी मुलाकात हिंगलाज माता के स्थान पर हुई. हिंगलाज माता के स्थान पर पहुंचने के लिए पक्की सीढियाँ बनाई गई हैं. यहाँ हिंगलाज शिव मंडली का बक्सा रखा गया है जहाँ लोग रक़म डालते हैं, यहाँ अबीर भी है जिसे पुजारी माथे पर लगाते हैं.  कमू ने भी माथे पर तिलक लगा रखा है. मैं कमू से भजन सुनाने का आग्रह करती हूँ वह दो-तीन भजन सुनाता है. मैं माता के पटों के नीचे रखे प्रसाद को देखती हूँ जिसे सिर्फ महिलाएँ ही देख सकती हैं. और फिर पटों से उन्हें ढक देती हूँ. शाम के ढलते साए के साथ मैं वापसी की शुरूआत करती हूँ. अभी मैं बीस क़दम भी नहीं चली कि पीछे कमू की आवाज़ गूंजी.

जय जगदीस हरे, स्वामी जय जगदीस हरे
संत जनों के संकट, दास जनों के संकट…

मैं हिंगलाज के पुख़्ता विश्राम घरों और पुजारियों के आवासों की तरफ़ बढ़ रही हूँ, पीछे कमू की आवाज़ आ रही हैः

तुम ही माता, तुम ही पिता, तुम ही तुम हो माँ..
ओ माँ… ओ माँ…ओ माँ…

One thought on “शक्तिपीठ हिंगलाज

  1. Jay Mataji Deviputra,
    I am so amazed and blessed to have a read about your articles and thereby details of information you shared here in.
    Please share any further details you have on above articles.
    I am more interested to know origin and story of Nagnechi Mata.
    Thanks for great piece of work.

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