चारण बनो

बहु बेटी रे कारणे, जीवन मरण विचार ।
इज्जत इधिको आदरे , चहके चारणचार ॥1॥

सत राखे सत में रहे, सत हो सत व्यवहार ।
सत जीणो मरणो पड़े जिन्दो चारणचार ॥2॥

नित उठ निरखे टीपणो, कर्म मर्म आधार ।
विद्या धन धीरज धरम, चारण चारणचार ॥3॥

नशे सूँ नफरत करे , सादा खान विचार ।
लालच मन गफलत नहीं, जीते चारणचार ॥4॥

सांई साची प्रित हो , अधरम पर नित वार ।
चारण कव चुके नहीं , सब हित चारणचार ॥5॥

चार वर्ण चारण नही, सब पोथी इक सार ।
सफल कर्म अकल धरम , ना लोपे चारणचार ॥6॥

कुँवर# सा मेवाड़#!” जय माता दी

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