मैं चारण हूँ

मैं देवी पुत्र कवि,ज्ञान की छविकलम का वारण हूँ, मैं चारण हूँ |
मैं देवी पग का दास,दिव्य नर खासशारदे धारण हूँ मैं चारण हूँ |
मैं तलवारों की धार,शब्द की मारकायरता मारण हूँ, मैं चारण हूँ |
मैं वेदों का शब्द,काव्य प्रारब्धजङता सँहारण हूँ, मैं चारण हूँ |
मैं इतिहासों का शाख्य,राज चाणक्यनीति निर्धारण हूँ, मैं चारण हूँ |
मैं कन्या पूजित वर्ण,विध्व परिपूर्णपवित्र अवधारण हूँ, मैं चारण हूँ |
मैं आदिमता का सँगी,आधुनिक श्रंगीप्रगति सँचारण हूँ, मैं चारण हूँ ।
मैं प्रखर वाणी प्रवीण,लोलुपता क्षीणस्वच्छंद उच्चारण हूँ, मैं चारण हूँ |
मैं सत्याग्रह का जनक,सत्य का फलककृत्य असाधारण हूँ, मैं चारण हूँ |

-कवि वरूण सिंह बाड़ी

चारण बनो

बहु बेटी रे कारणे, जीवन मरण विचार ।
इज्जत इधिको आदरे , चहके चारणचार ॥1॥

सत राखे सत में रहे, सत हो सत व्यवहार ।
सत जीणो मरणो पड़े जिन्दो चारणचार ॥2॥

नित उठ निरखे टीपणो, कर्म मर्म आधार ।
विद्या धन धीरज धरम, चारण चारणचार ॥3॥

नशे सूँ नफरत करे , सादा खान विचार ।
लालच मन गफलत नहीं, जीते चारणचार ॥4॥

सांई साची प्रित हो , अधरम पर नित वार ।
चारण कव चुके नहीं , सब हित चारणचार ॥5॥

चार वर्ण चारण नही, सब पोथी इक सार ।
सफल कर्म अकल धरम , ना लोपे चारणचार ॥6॥

कुँवर# सा मेवाड़#!” जय माता दी

ચારણ-કન્યા

ચૌદ વરસની ચારણ-કન્યા
ચૂંદડિયાળી ચારણ-કન્યા
શ્વેતસુંવાળી ચારણ-કન્યા
બાળી ભોળી ચારણ-કન્યા
લાલ હિંગોળી ચારણ-કન્યા
ઝાડ ચડંતી ચારણ-કન્યા
પહાડ ઘૂમંતી ચારણ-કન્યા
જોબનવંતી ચારણ-કન્યા
આગ-ઝરંતી ચારણ-કન્યા
નેસ-નિવાસી ચારણ-કન્યા
જગદમ્બા-શી ચારણ-કન્યા
ડાંગ ઉઠાવે ચારણ-કન્યા
ત્રાડ ગજાવે ચારણ-કન્યા
હાથ હિલોળી ચારણ-કન્યા
પાછળ દોડી ચારણ-કન્યા