श्री तणोट राय

श्री तणोट राय मंदिर स्थान भाटी राजा की राजधानी थी वह मातेश्वरी के भक्त थे ! उनके आमंत्रण देने पर महामाया सातों बहने तणोट पधारी थी , इसी कारण भक्ति भाव से प्रेरित होकर राजा ने एक मन्दिर की स्थापना की थी , वर्तमान मे यह स्थान जैसलमेर नगर से १२० की.मी पशिचम सीमा किशनगढ़ रोड पर बना हुवा हें ! जो भारतीय सेना बी. एस. ऍफ़. जैसलमेर राज घराना व खाडाल के ग्रामो का मुख्य आस्था केन्द्र हें बड़ा ही भव्य रमणीक मन्दिर हें !

कहते हें सन १९६५ मे पाक सेना का पड़ाव था लेकिन मातेश्वरी की कृपा से किसी भी सैनिक के कोई खरोच भी नही आयी ! उल्टे पाक सेना की पुरी ब्रिगेड आपस मे लड मरी , उस सेना का ब्रिगेडियर यह माजरा देखकर विसमित हो गया वह मन ही मन इस देविक चमत्कार से मुसलमान होते हुवे भी भी श्रद्धा से मनोती मानने लगा व माता की शरण ग्रहण करने पर उसके प्राण बच गये पुरी ब्रिगेड ख़त्म हो गई उकत अधिकारी मैया का भक्त बन गया ! कुछ समय बाद मे पासपोर्ट से भारत आया तणोट राय की पूजा अर्चना कर पश्चिम सीमा पर दोनों मुल्क मे शान्ति बनी रहे , ऐसी कामना करके अपने वतन को लौट गया !

इस प्रकार माताजी कितनी दयालु हें जो उसे पुकारता उसे शरण व अभय कर देती हें ऐसे चमत्कारों से वसीभूत होकर बी. एस. ऍफ़. के कर्मचारी व अधिकारी तो मैया की अनन्य भगत बन गये प्रत्येक कंपनी जहा भी रहती हें सर्वप्रथम मैया का छोटा मोटा स्थान बना कर नियमित पूजा होती हें नवरात्री के दिनों मे बड़ा भव्य मेले का आयोजन होता हें ! अनेको यात्री आते हें इस प्रकार मुख्यालय से तणोट राय आवागमन के साधन नव दीन तक निशुल्क बसे चलती हें ! बी. एस. ऍफ़. के फोजी भाई तो धन्य हें जो सीमा की निगरानी करते हुवे मैया के प्रति अटूट श्रदा से सेवा पूजन करते हें , कोई मन्दिर मे सफाई का कार्य करते हें , कोई लंगर सँभालते हें और कई गाना बजाना करते हें ! कितने यात्रियों की सेवा मे जुट जाते हें , हमेशा लंगर भोजन का आयोजन होता हें ! मैया के भजन कीर्तन चलते रहते हें , धन्य हें मैया व भक्त फोजी भाई !!!!

यह युद्ध १६ नवम्बर , १९६५ को हुवा था, तनोट चारो और से घिर चुका था ! कर्नल जय सिंह राठोड़ (थैलासर) बीकानेर के नेतृतव मे केवलतीन सो सैनिक थे ! शत्रु ने तीन तरफ़ से धुहादार हमला कर दिया था ! हमारे जवान निरंतर लड़ते रहे ! दुसरे दीन एक जवान मे भगवती काभाव आया कि घभरावो मत तुम्हारा बाल भी बाका नहीं होगा ! हुवा यही तनोट राय कि कृपा से भारतीय सेना के किसी भी जवान को कोईचोट नहीं आयी, और शत्रु फौज हतास होकर पॉँच सो शव छोड़कर भाग खड़ी हुयी ! आश्चर्य इस बात का हे कि मंदीर की आसपास ३००० बमबरसाए गए , मंदीर मे एक भी खरोच नहीं आयी , उनमे से कुछ बम आज भी मंदीर मे पड़े हे !

तणू भूप तेडाविया, आवड़ निज एवास ! पूजा ग्रही परमेश्वरी , नामे थप्यो निवास !!

Tanot Ray Temple


Tanot Rai Temple

श्री देग राय

देग राय मन्दिर : यह स्थान जैसलमेर से ५० की. मी. देवीकोट साकड़ा रोड़ पर हें ! यहाँ एक तालाब के ऊपर बड़ा रमणीक मन्दिर हें ! इस जगह मातेश्वरी ने सहपरिवार निवास किया था ! एक दिन एक असुर रूपेण भेंसे को काट कर देग मे पकाया था जब भेंसे के मालिक ने मैया के भाई महरखे से पूछा तो उसने सत्य बात बता दी इससे कुपित होकर देवी ने भाई को श्राप दे दिया व उस भेंसे की साब्जी को चंदले मे तबदील कर दिया व उस महाशय के भ्रम का निवारण हुवा , कुछ जानकर लोग इस दुर्घटना का जिक्र अन्य जगह का करते हें लेकिन मैया ने भेंसे का भक्षण इसी जगह किया था इसी कारण भाई को श्राप दिया था ! मैया के श्राप से भाई का पैणा सर्प ने दस लिया था ! महामाया ने अपने तपोबल से सूर्य को लोहड़ी रूपी चादर की धुंध से ढक दिया था ! मैया ने भी मर्यादा पुरषोतम श्री राम की तरह मनुष्य लीला के लोकिक कार्य इस भाती किए थे देव अगर देविक साधना से चाहते तो तुंरत जीवन दे देते , लेकिन संसारियों को भ्रम मे डालने ले लिए उपचार औषधि से जीवन दान विधि बताई ! इस प्रकार उक्त स्थान पे भेंसे की बलि देने के कारण अन्य मंदिरों मे भी भेंसे , बकरे की बलि चढाई जाने लगी ! मनुष्य की उदर पूर्ति व मनोकामना दोनों सिद्ध होती हें !!

दे पुजाई देविया , रवी खड़ो पग रोप , मार जिवाडो मेहरखो , कियो आवड़ा कोप !